Thursday 26 November 2020

 

          क्रिया

शब्द जो काम का बोध कराते,

क्रिया शब्द हैं वे कहलाते।

कर्ता कर्म के साथ क्रिया,

सबने मिलकर वाक्य पूरा किया।

क्रिया के दो भेद प्यारे

सकर्मक अकर्मक नाम न्यारे।

क्या, किसको से प्रश्‍न बनाओ,

सकर्मक अकर्मक की उलझन सुलझाओ।

उत्तर मिले तो क्रिया सकर्मक,

नहीं तो भाई समझो अकर्मक।

 

                                    रचना मिश्र

Friday 30 October 2020

अपठित गद्यांश -बैंक (unseen passage- bank)

 

 

प्रश्न: दिए गए गद्‍यांश को ध्यान से पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

जीवन में अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हमें पैसों की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए धन को सुरक्षित रखना आवश्यक है। बैंक एक ऐसी ही वित्तीय संस्था है जिसमें लोग अपना धन सुरक्षित रखते हैं। इसके लिए बैंक उस धन पर कुछ ब्याज भी देते है। ज़रूरत पड़ने पर लोग अपनी आवश्यकतानुसार बैंकों से ऋण भी लेते हैं और धीरे-धीरे कर उस ऋण को ब्याज के साथ बैंक को वापस चुकाते हैं। बैंक बहुत से कार्यों के लिए कर्ज देते हैं, जैसे- घर बनाने के लिए, उच्च शिक्षा के लिए, शादी-ब्याह के लिए, कारोबार के लिए, व्यक्‍तिगत ज़रूरत के लिए आदि। इस ऋण पर मिलने वाला ब्याज ही बैंकों की आमदनी का मुख्य स्रोत है।

भारत में बैंकों का इतिहास मात्र २०० साल पुराना है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तीन बैंकों की स्थापना की। बैंक ऑफ़ बंगाल, बैंक ऑफ़ बॉम्बे और बैंक ऑफ़ मद्रास। बाद में इन तीनों बैंकों को एक साथ मिलाकर इम्पीरियल बैंक बना दिया गया और इसकों ही  १९५५ में  भारतीय स्टेट बैंक के नाम से जाना जाने लगा। इलाहाबाद बैंक भारत का पहला निजी बैंक था। १९३५ में बने भारतीय रिज़र्व बैंक को स्वतंत्रता के पश्‍चात केंद्रीय बैंक का दर्जा दिया गया। इसे बैंकों का बैंक भी घोषित किया गया। वित्त से संबंधित सभी नीतियों और अन्य वित्तीय संस्थाओं की नियंत्रण शक्ति भारतीय रिज़र्व बैंक के पास ही हैं।

स्वतंत्रता पश्‍चात  सबसे पहले १९४९ में भारती रिज़र्व बैंक का और बाद में  १९ जुलाई १९६९ को देश के प्रमुख १४ बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ। वर्तमान में कुल १९ राष्‍ट्रीयकृत बैंक हैं। राष्ट्रीय बैंक का तात्पर्य है कि ये बैंक अब देश की सरकार के आधीन होंगे इसलिए हम सुविधा की दृष्‍टि से इन्हें सरकारी बैंक भी कहते हैं।

इसके अतिरिक्‍त कई वित्तीय संस्थाएँ, बीमा संस्थाएँ, निजी बैंक, विदेशी बैंक, सहकारी बैंक आदि बैंकिंग उद्‍योग का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

१.    १  बैंक क्या हैं और हमें बैंको की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

२.     बैंक किन-किन कार्यों के लिए कर्ज देते है?

३.     भारत में बैंकों की शुरुआत कब हुई? विस्तार से समझाइए।

४.     बैंकों के राष्ट्रीय करण से आप क्या समझते हैं? बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?

५.    भारत का पहला निजी बैंक कौन-सा था?

६.    भारतीय रिजर्व बैंक के क्या कार्य हैं?

७.    इस गद्‍यांश को उचित शीर्षक दीजिए।

 

 

Wednesday 29 July 2020

formal letter, aupcharik patra औपचारिक पत्र


औपचारिक पत्र का प्रारूप

_____________,
_____________,                          पत्र लिखने वाले (प्रेषक ) का पता
______________।

लाइन छोड़ें----------------------------
दिनांक( ४ अगस्त २०२०)
लाइन छोड़ें----------------------------

सेवा में,
श्रीमान_________________________   पद का नाम (जैसे- प्राचार्य जी, संपादक जी, मंत्रीजी आदि)

______________________________,
______________________________,               जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसके कार्यालय का पता
______________________________।

लाइन छोड़े----------------------------------

विषय- ___________________________________________ हेतु प्रार्थना/आवेदन/ पत्र।

लाइन छोड़े-------------------------------
महोदय/ महोदया/ मान्यवर,                संबोधन
सविनय निवेदन है कि _______________________________ ________________ _____________ _________________________________________________________________________________________।
________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________।
अस्तु श्रीमान जी से अनुरोध है कि _________________ _________________________ _________
___________________________ कृपा करें।
सधन्यवाद,
लाइन छोड़े------------------------------------
(भवदीय/ भवदीया)/ प्रार्थी/  (आज्ञाकारी शिष्‍य/ आज्ञाकारिणी शिष्‍या),
क,ख,ग  (अपना नाम लिखें)


Thursday 23 July 2020

कला, हस्तकला, कविता, कविता- हस्तकला


कविता – हस्तकला

दुनिया है बहुरंगी, रंगीन है कला,
दिखती है सुंदर, रंगता है कौन भला।
देने को इसे नया रूप,
जुटा रहता है मतवाला।
            नजाकत से पिरोता है कल्पना
            जुटा रहता है दिनभर कलाकार,
            चाहता है सजीव बनाना,
            दिल की हर एक हसरत।
कल्पनाओं और हसरतों का
संगम कहलाती है, हस्तकला।
कभी यह देती है संतुष्‍टि,
और कहीं है दो रोटी का सवाल जुड़ा।
            जो भी हो कारण, पर बयाँ कर देती है,
            उस परिवेश की कथा, ये हमारी हस्तकला।
इस मशीनी युग के सूरज का,
लगा है संस्कृति पर ग्रहण,
दिखावे की चकाचौंध में
फ़ीकी पड़ गई हस्तकला।
            आधुनिकता की उर्वरता ने,
            ऊसर कर दी है हमारी संस्कृति
            मिट रही है कला,
            अवसान में है हस्तकला।
आइए इस दीप्तिमान आधुनिकता की चकाचौंध में,
अपनी संस्कृति के मूलरूप की आत्मा बचाएँ,
विहंगम दृश्यों के भँवर से,
 अपनी महानतम कला का परिचय कराएँ।
कभी जो हमारी पहचान थी, वह खुद आज पहचान की मोहताज है,
आइए एक कदम बढ़ाकर कला और कलाकारों को गले लगाएँ
जिसके प्रत्येक अंश में  हमारी संस्कृति की सोंधी महक है,
ऐसी महान कला को विश्‍व में सिरमौर बनाएँ।
                                                ’रचना मिश्र’

Monday 20 July 2020

लोकोक्ति लेखन, ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है।, अर्थ और कहानी, लोकोक्ति पर आधारित कहानी

लोकोक्ति पर आधारित कहानी

ईश्‍वर जो करता है, अच्छा ही करता है।
दी गई लोकोक्‍ति का अर्थ उसके शब्दो से ही स्पष्‍ट है कि हमें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह जो करता है वह हमारे भले के लिए ही करता है। इसलिए हमें अपनी किसी भी अवस्था के लिए ईश्वर को न तो दोषी मानना चाहिए न ही उसे भला-बुरा कहना चाहिए बल्कि यह समझना चाहिए कि ईश्‍वर जो कुछ भी करता है हमारे भले के लिए ही करता है। इस प्रकार हमें सदैव अपने अंदर सकारात्मक विचार रखते हुए, ईश्वर पर आस्था रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। इस लोकोक्‍ति पर आधारित एक कहानी इस प्रकार है।

पहली कहानी
१.        एक समय की बात है, किसी गाँव में एक गरीब महिला रहती थी। उसका नाम था ’कमला’। कमला गरीब तो थी पर वह बहुत परिश्रमी और दयालु स्वभाव की स्त्री थी। वह अपने ही गाँव के ज़मीदार ’किसन सिंह ’ के यहाँ काम करती थी, वे भी बड़े दयालु प्रवृत्ति के इंसान थे। आए दिन गरीबों को कुछ न कुछ भेंट देते रहते थे। कमला का काम खेत से अनाज़ ज़मींदार के घर तक लाना था। वह अपना काम दो टोकरियों के सहारे बड़ी लगन से करती थी। उसने एक बड़े और मज़बूत बाँस की लकड़ी में दो टोकरियाँ इस तरह टँगा रखीं थी कि एक बार में वह अन्य लोगों की अपेक्षा दुगना अनाज़ ले आ सके। कुछ दिनों तक जी तोड़ काम करते हुए कमला की एक टोकरी एक स्थान पर कट गई थी। उसे बड़ा दुख लगा पर उसने अपना कार्य बंद न किया। वह लगातार उसी गति से कार्य करती रही। एक दिन सेठ ने देखा कि घर पहुँचते-पहुँचते उसका आधा अनाज रास्ते में गिर जाता है। उसने कमला को बड़ी ज़ोर से डाँटा “ कमला जितना अनाज़ तुम रास्ते में गिरा देती हो उससे न जाने कितने गरीब लोगों के चूल्हे जल सकते हैं। यह टोकरी फ़ेंककर दूसरी क्यों नहीं ले लेती।“ मालिक की यह बात सुनकर कमला को तो ज़्यादा बुरा नहीं लगा पर वह टोकरी जिसमें छेंद था बिलख-बिलख कर रोने लगी। उसने कहा- “कमला मैं बहुत बुरी हूँ, तुम्हें मेरे कारण इतनी डाँट पड़ी।“ तब  कमला ने उसे दिलाशा दिया और कहा कि कल जब मैं अनाज़ लेकर खेत से आऊँ तो तुम रास्ते पर ध्यान रखना। उस टोकरी ने वही किया। उसने देखा कि जब टोकरी से अनाज़ गिर रहा था तब बहुत से कीड़े- मकोड़े, पशु- पक्षी आदि उस अनाज़ से अपना पेट भर रहे थे। उसे बात समझ में आ गई। घर पहुँचकर इस टोकरी ने सारी बात ज़मीदार को बताई। ज़मींदार दयालु तो थे ही उन्हें लगा जो अनाज़ मैं गरीबों को देता वही इसप्रकार कमला अन्य ज़रूरत मंद जीवों को उपलब्ध करा रही है।
उन्होंने कमला को बुलाकर अपनी गलती की माफ़ी माँगी और कहा कि टोकरी मत बदलना क्योंकि ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है।


दूसरी कहानी 
२.       एक समय की बात है किसी गाँव में एक गरीब लड़का रहता थी।उसका नाम था मुद्रक। किसी कारण वश वह एक भयंकर रोग से ग्रसित हो गया। उस रोग के चलते उसका मनुष्‍य का शरीर धीरे-धीरे पशुवत हो गया। उसके पूरे शरीर में बड़े-बड़े बाल उग आए और उसके नाखून किसी जंगली जानवर के पंजों से दिखने लगे। उसे जो देखता वही उसका मज़ाक उड़ाता। छोटे बच्चे उसे देखकर डरने लगे। अब शारीरिक समस्याओं के साथ-साथ वह मानसिक रूप से भी तनाव ग्रस्त हो गया था। प्रतिदिन के इस अपमान को वह सहन न कर पाया और अपना गाँव छोड़कर जंगल में जाकर पशु-पक्षियों के बीच ही रहने लगा। धीरे-धीरे उसने पशु-पक्षियों की बोलियाँ उनका स्वभाव आदि समझना शुरू कर दिया।
मुद्रक ने पशु-पक्षियों से ऐसी घनिष्‍ठ मित्रता कर ली कि वह जो कहता वे सब वैसा ही करते थे। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उसने जानवरों को पास के नगर में जाकर चोरी करने के लिए भी प्रशिक्षित कर दिया था।  अब वे जानवर पलक झपकते ही नगर में चोरी करने लगे। इसप्रकार की चोरियों से परेशान होकर नगर वासियों ने राजा से शिकायत की। राजा के गुप्तचरों ने कुछ दिनों में ही मुद्रक का पता लगा लिया और उसे पकड़ लिया गया। चोरी का कारण पूछे जाने पर उसने बताया कि भगवान मुझसे नाराज़ हो गया था इसलिए उसने मेरी ऐसी हालत कर दी अब मैं जंगल में रहता हूँ , ये पशु-पक्षी ही मेरे मित्र हैं और अपनी छोटी-मोटी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मैं इन्हें चोरी करने भेजता हूँ।
कारण सुनकर राजा दुखी हुए और सांत्वना देते हुए मुद्रक से कहा कि हमारे राज्य में वन विभाग में अधिकारी की जगह खाली है, जिसके लिए हमें ऐसे ही आदमी की तलाश थी जो जंगल को और जंगली जीवों को अच्छे से पहचानता हो। इसलिए आज से तुम्हें हम वन विभाग का अधिकारी बनाते हैं। तुम अपनी स्थिति के लिए भगवान को दोषी मत बनाओ क्योंकि ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है।

Friday 17 July 2020

बहुवचन के विभिन्न रूपो का अभ्यास, बहुवचन के रूप,


बहुवचन का अभ्यास-

         दिए   गए शब्द के उचित बहुवचन रूप का प्रयोग करते हुए रिक्‍त स्थानों की पूर्ति कीजिए
१)      ग्रामवासी
अ)    गाँव में कई _________ रहते थे।
आ)  सभी _____________ को राजा ने अपने दरबार में बुलाया।

२)      राजा-
अ)    सभी ________ अपनी प्रजा के भले की सोचते हैं।
आ)   कुछ _________ ने स्वयं प्रजा के साथ मिलकर काम किया।

३)      हाथी-
अ)    ________ का झुंड सड़क पर आ गया था।
आ)  बहुत सारे __________ सर्कस में काम करते थे।

४)     कमरा-
अ)    इस घर में पाँच _____ हैं।
आ)  सभी _________ के रंग अलग-अलग हैं।

५)     चटाई
अ)    यहाँ पर तरह-तरह की ____________ हैं।
आ)   कुछ ___________ पर बने फूल मुझे अच्छे लगे।


Sunday 28 June 2020

हम पंछी उन्मुक्त गगन के (शिवमंगल सिंह सुमन) व्याख्या, अर्थ, भावार्थ


हम पंछी उन्मुक्त गगन के (शिवमंगल सिंह सुमन)
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।
व्याख्या- इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता का महत्‍त्व एक पंछी के माध्यम से बताने की कोशिश की है। वे कहते हैं कि पंछी का सामान्य गुण पंख फैलाकर खुले आसमान में उड़ने का है वे पिंजरे में बंद होकर प्रसन्‍न नहीं हो सकते। चाहे वह पिंजरा सोने का ही क्यों न हो अर्थात वहाँ चाहे कितनी भी सुख-सुविधाएँ हों। पिंजरे की तीलियों से टकराकर उसके पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीने वाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबौरी
कनक – कटोरी की मैदा से
व्याख्या- पंछी के माध्यम से कवि कहते हैं कि हम तो नदी का बहता जल पीने वाले है। पिंजरे में आसानी से उपलब्ध दाना-पानी से ज़्यादा नीम की कड़वी निबौरियाँ (नीम के फल) पसंद हैं। अर्थात पंछी को आज़ाद रहकर भूखा-प्यासा रहना अधिक पसंद है न कि पिंजरे में रहकर किसी की गुलामी करना।(कैद में मिल रही सुख-सुविधाओं से ज़्यादा  अच्छा संघर्षरत स्वछंद जीवन होता है।)
स्वर्ण -शृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरु की फुनगी पर के झूले।
            ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नीले नभ की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
व्याख्या- कविता में पंछी कहता है कि सोने के पिंजरे में कैद होने पर हम अपनी स्वच्छंदता, उड़ान सब भूल गए हैं। अब तो पेड़ की ऊँची डालियों में मस्त होकर झूलने का सपना ही मात्र रह गया है। हमारी चाह थी कि हम उड़ते हुए इस आसमान की सीमा नाप लेंगे और आसमान में बिखरे अनार के दाने रूपी तारों  सूरज के समान अपनी चोंच से चुग लेंगे। अर्थात उन तक पहुँच जाएँगे परंतु अब तो पिंजरे में कैद होकर यह तो मात्र कल्पना ही है।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।
            नीड़ न दो चाहे टहनी का
            आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,
            लेकिन पंख दिए  हैं तो
            आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।
व्याख्या- पंछी कहता है कि आज़ाद होकर हम उड़ते –उड़ते क्षितिज (जहाँ धरती और आसमान मिलते हुए प्रतीत होते हैं। )से होड़ लगाना चाहते थे। इस दौड़ में या प्रतिस्पर्धा में या तो हम क्षितिज को पा लेते या हम थक कर चूर हो जाते या मर जाते।
वे सभी से निवेदन करते हैं कि चाहे हमारे घोंसलों को तोड़ दो, कोई अन्य सुविधा भी मत दो पर यदि पंख दिए हैं तो हमें स्वतंत्र होकर उड़ने दो उसमें कोई बाधा न डालो।
विशेष-जिस प्रकार पंछी  सभी सुखों को त्याग कर स्वतंत्र होकर उड़ना चाहता है उसी प्रकार हम सभी किसी तरह की गुलामी और कैद नहीं चाहते हम आज़ाद होकर आगे बढ़ना चाहते हैं।

Thursday 18 June 2020

informal letter format, अनौपचारिक पत्र का प्रारूप,



अनौपचारिक पत्र का प्रारूप

_______________,
_______________,                        अपना पता
_______________
लाइन छोड़े-------------------

दिनांक  (१५ जून २०२०)

लाइन छोड़े-------------------

आदरणीय/ प्रिय रिश्ता/ नाम,(मित्र/छोटे भाई -बहन के लिए)
प्रणाम/ नमस्ते
मैं यहाँ कुशल मंगल हूँ। आशा करती/ करता हूँ कि आप भी वहाँ कुशल मंगल होंगे। __  __ __  ___________   __________।
________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________।
_________________________________________________________________ अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना और छोटे भाई को मेरा प्यार देना।

लाइन छोड़े-------------------

आपका पुत्र/ भाई/ मित्र,
क, ख,ग(अपना नाम)

लाइन छोड़े-------------------

 ________________,
________________,                       जिसे पत्र भेजा जा रहा है उसका पता
________________ ।                              (receiver’s address)

Saturday 6 June 2020

ऑन लाइन शिक्षण और ऑफ़ लाइन शिक्षक


बड़ा सुहाना मौसम है आज! आज है जून का पहला रविवार। चौंकिए नहीं ये कोई खास अवसर वाला  पहला, दूसरा, तीसरा...... जैसा रविवार नहीं है और न ही कोई भारतीय त्योहार, जिसके भूल जाने का अफ़सोस हो । यदि ऐसा है भी तो मेरे ज्ञान क्षेत्र के दायरे से बाहर है।आज का दिन खास है क्योंकि यह कोविड-१९ की एक महान देन है। आप सबका इससे कहीं न कहीं वास्ता ज़रूर पड़ा होगा। यह है-ऑनलाइन संस्कृति।
कोविड -१९ महामारी के भयंकर दौर में देश का पालनहार , तारण हार बने ऑन लाइन संस्कृति ने तो जैसे धूम ही मचा दी .... पर कहाँ??? या ये कहें कि भोले-भाले देशवासियों की गले की फ़ाँस बन गया। ई-पास, प्लास्टिक मनी और पता नहीं क्या-क्या जिसकी ज़्यादातर लोगों ने कल्पना भी न की थी वैसे सभी काम उस देश में जहाँ अब भी ७०% जनसंख्या या तो गाँवो में है या महानगरों की झोपड़ पट्‍टियों में। मतलब साफ़ है उन्होंने ऐसी कोई शैक्षिक योग्यता हासिल नहीं की जो इन्हें इस तरह के लेन-देन में पारंगत करती हो। ये तो है इसकी बड़ी विसंगति..
पर जिस दिलचस्प बात को लेकर मैंने यह लेखन आरंभ किया था वह तो मामूली सी दिखने वाली बड़ी बात में दबी जा रही है।हाँ जी तो मैं बात करना चाहती हूँ हमारे देश के नौ निहालो, भावी भविष्य के प्रवर्तक हमारे बच्‍चों और मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर। वर्तमान समय में ऑनलाइन संस्कृति का सर्वाधिक उपभोग करने वाले और नौसिखिया कौम हमारे बच्‍चे जिनको कुछ समय पहले तक एक-एक मिनट के लिए कम्प्यूटर और मोबाइल के लिए न जाने कितनी मिन्‍नतें और गुहार लगानी पड़ती थी। और उन्हें इनसे दूर रखने के लिए इसके दुष्‍परिणामों पर न जाने कितने शोध कर्ता, अन्वेषक, चिकित्सक, मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों ने अपने जीवन के कीमती पल हवन कर दिए।
कहते हैं न दिन तो सबके फिरते हैं तो अब वही एक-एक पल के स्क्रीन टाइम को तरसते बच्‍चे बैठते हैं पाँच से  आठ घंटो तक उस चमकदार चकाचौंध कर देने वाले मोबाइल और कम्प्यूटर के सामने। कुछ उत्साह से कुछ बेचारगी में। ये मध्यम वर्गीय और उच्च वर्गीय, निजी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले शहरी और कस्बाई बच्‍चों ने इस शिक्षा जगत की नाव खेने का बीड़ा-सा उठा रखा है।
उनकी इस नाव को पार उतरवाने का उत्तरदायित्व जिन कंधों पर है वह है आज का शिक्षक। बच्चे तो अभी बच्चे हैं , कच्‍ची माटी जिस आकार में ढालोगे ढल जाएँगे पर इन रूढ़ हो चुके शिक्षकों के मस्तिष्‍क का क्या? ये बात सही होगी कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती पर क्या यह सब पर लागू होती है?? इन्हीं सवालों को नकारता यह शिक्षक बढ़ा जा रहा है आगे ’कैरट और स्टिक’ की थ्योरी को सत्य करता, या मरता क्या न करता की कहावत को सिद्‍ध करता। तो जनाब पिछले कई हफ़्तों से यह ऑन लाइन की जद्‍दोजहद चालू है और विश्‍वास मानिए काम का इतना दबाव शायद मैंने एक शिक्षिका ने कभी महसूस नहीं किया कि मुझे इस इतवार को ऐसा एहसास हुआ जैसे पंद्रहों की दिवाली की सफ़ाई के बाद अंत में आपको दिए जलाने और मिठाई खाने का अवसर मिला हो।
पर अभी तो पार्टी शुरू हुई है!! अभी तो मंज़िल बहुत दूर नज़र आती है। उस पर व्हाट्‍स ऐप और फ़ेसबुक पर आती पोस्ट- स्कूल बंद कर दो, भाई इस अदना से शिक्षक का भी योगदान है भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ किसी पढ़े लिखे बेरोजगार का अंतिम कैरियर ऑप्शन शिक्षक बनने का होता है जिससे वह किसी तरह अपना पेट पाल सके या फ़िर महिलाओं को अपने ऊपरी खर्चों के अर्जन बावत मिल रही सांत्वना राशि जितना वेतन ।
इतनी परेशानियों के चलते इन लौह-पुरुषों ने ऑन-लाइन शिक्षण रूपी तालाब में हाथ-पाँव मारने शुरु कर दिए है।ये हर संभव प्रयास करते हैं अपनी परेशानियों को दरकिनार कर नए-नए प्रयोग करने की, तकनीकियों को जानने की और अपने विद्‍यार्थियों के नावों को पार लगाने की। भला हो इस ऑन लाइन संस्कृति का जिसकी कृत्रिम बुद्‍धिमत्‍ता ने इस सर्व विजयी मानव की प्राकृतिक बुद्‍धिमत्‍ता को मात दे रखी है। पर इस क्षेत्र के पंडितों के अनुसार अभी तो यह शुरुआत है अभी इस महामस्तिष्‍क का अलौकिक रूप देखना बाकी है।
अतएव इन्हीं सभी कारणों से यह जून का पहला रविवार अविस्मरणीय और चरम सुख की अनुभूति कराता है और मुझे एक शिक्षिका को यह बता जाता है कि कल सोमवार है और फ़िर कुछ नया देखने और सीखने को है....... सदा सीखते रहो...

Sunday 19 January 2020

kavita murajhaya phool


qÉÑUfÉÉrÉÉ TÔüsÉ 

oÉÌaÉrÉÉ qÉåÇ mÉåÄQû Måü lÉÏcÉå mÉÄQûÉ

qÉÑUfÉÉrÉÉ TÔüsÉ

ZÉÑzÉoÉÔ xÉå pÉUÉ, MüÐcÉÄQû xÉå xÉlÉÉ,

qÉÑUfÉÉrÉÉ TÔüsÉ

UÉåiÉÉ Wæû AmÉlÉÏ ÌMüxqÉiÉ mÉU,

iÉUxÉ ZÉÉiÉÉ Wæû ZÉÑS mÉU

uÉWû xÉWûqÉÉ xÉÉ, QûUÉ xÉÉ mÉÄQûÉ Wæû

YrÉÉåÇÌMü,

MüÉåD lÉWûÏÇ AmÉlÉÉLaÉÉ ExÉå,

MÑücÉsÉ eÉÉLaÉÉ ÌMüxÉÏ AÉæU Måü mÉæUÉåÇ iÉsÉå,

ÄTåüMü ÌSrÉÉ eÉÉLaÉÉ MücÉUå qÉåÇ MüWûÏÇ....

ÍqÉOû eÉÉLaÉÉ ExÉMüÉ AÎxiÉiuÉ uÉWûÏÇ....

mÉU rÉÌS uÉWû uÉWûÏÇ UWûÉ ÍqÉOèOûÏ qÉåÇ ÍqÉsÉ aÉrÉÉ

iÉÉå ExÉÏ qÉÑUfÉÉL TÔüsÉ MüÐ ZÉÑzÉoÉÔ

SåaÉÏ ÍqÉOèOûÏ MüÉå iÉÉMüiÉ

ExÉMåü eÉæxÉå lÉ eÉÉlÉå ÌMüiÉlÉå WûÏ TÔüsÉ qÉWûMåÇüaÉå

ExÉ ÍqÉOèOûÏ qÉåÇ

eÉWûÉð ÍqÉsÉ aÉrÉÉ jÉÉ

uÉWû qÉÑUfÉÉrÉÉ TÔüsÉ

                        UcÉlÉÉ ÍqÉ´ÉÉ

__________