Wednesday 29 July 2020

formal letter, aupcharik patra औपचारिक पत्र


औपचारिक पत्र का प्रारूप

_____________,
_____________,                          पत्र लिखने वाले (प्रेषक ) का पता
______________।

लाइन छोड़ें----------------------------
दिनांक( ४ अगस्त २०२०)
लाइन छोड़ें----------------------------

सेवा में,
श्रीमान_________________________   पद का नाम (जैसे- प्राचार्य जी, संपादक जी, मंत्रीजी आदि)

______________________________,
______________________________,               जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसके कार्यालय का पता
______________________________।

लाइन छोड़े----------------------------------

विषय- ___________________________________________ हेतु प्रार्थना/आवेदन/ पत्र।

लाइन छोड़े-------------------------------
महोदय/ महोदया/ मान्यवर,                संबोधन
सविनय निवेदन है कि _______________________________ ________________ _____________ _________________________________________________________________________________________।
________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________।
अस्तु श्रीमान जी से अनुरोध है कि _________________ _________________________ _________
___________________________ कृपा करें।
सधन्यवाद,
लाइन छोड़े------------------------------------
(भवदीय/ भवदीया)/ प्रार्थी/  (आज्ञाकारी शिष्‍य/ आज्ञाकारिणी शिष्‍या),
क,ख,ग  (अपना नाम लिखें)


Thursday 23 July 2020

कला, हस्तकला, कविता, कविता- हस्तकला


कविता – हस्तकला

दुनिया है बहुरंगी, रंगीन है कला,
दिखती है सुंदर, रंगता है कौन भला।
देने को इसे नया रूप,
जुटा रहता है मतवाला।
            नजाकत से पिरोता है कल्पना
            जुटा रहता है दिनभर कलाकार,
            चाहता है सजीव बनाना,
            दिल की हर एक हसरत।
कल्पनाओं और हसरतों का
संगम कहलाती है, हस्तकला।
कभी यह देती है संतुष्‍टि,
और कहीं है दो रोटी का सवाल जुड़ा।
            जो भी हो कारण, पर बयाँ कर देती है,
            उस परिवेश की कथा, ये हमारी हस्तकला।
इस मशीनी युग के सूरज का,
लगा है संस्कृति पर ग्रहण,
दिखावे की चकाचौंध में
फ़ीकी पड़ गई हस्तकला।
            आधुनिकता की उर्वरता ने,
            ऊसर कर दी है हमारी संस्कृति
            मिट रही है कला,
            अवसान में है हस्तकला।
आइए इस दीप्तिमान आधुनिकता की चकाचौंध में,
अपनी संस्कृति के मूलरूप की आत्मा बचाएँ,
विहंगम दृश्यों के भँवर से,
 अपनी महानतम कला का परिचय कराएँ।
कभी जो हमारी पहचान थी, वह खुद आज पहचान की मोहताज है,
आइए एक कदम बढ़ाकर कला और कलाकारों को गले लगाएँ
जिसके प्रत्येक अंश में  हमारी संस्कृति की सोंधी महक है,
ऐसी महान कला को विश्‍व में सिरमौर बनाएँ।
                                                ’रचना मिश्र’

Monday 20 July 2020

लोकोक्ति लेखन, ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है।, अर्थ और कहानी, लोकोक्ति पर आधारित कहानी

लोकोक्ति पर आधारित कहानी

ईश्‍वर जो करता है, अच्छा ही करता है।
दी गई लोकोक्‍ति का अर्थ उसके शब्दो से ही स्पष्‍ट है कि हमें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह जो करता है वह हमारे भले के लिए ही करता है। इसलिए हमें अपनी किसी भी अवस्था के लिए ईश्वर को न तो दोषी मानना चाहिए न ही उसे भला-बुरा कहना चाहिए बल्कि यह समझना चाहिए कि ईश्‍वर जो कुछ भी करता है हमारे भले के लिए ही करता है। इस प्रकार हमें सदैव अपने अंदर सकारात्मक विचार रखते हुए, ईश्वर पर आस्था रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। इस लोकोक्‍ति पर आधारित एक कहानी इस प्रकार है।

पहली कहानी
१.        एक समय की बात है, किसी गाँव में एक गरीब महिला रहती थी। उसका नाम था ’कमला’। कमला गरीब तो थी पर वह बहुत परिश्रमी और दयालु स्वभाव की स्त्री थी। वह अपने ही गाँव के ज़मीदार ’किसन सिंह ’ के यहाँ काम करती थी, वे भी बड़े दयालु प्रवृत्ति के इंसान थे। आए दिन गरीबों को कुछ न कुछ भेंट देते रहते थे। कमला का काम खेत से अनाज़ ज़मींदार के घर तक लाना था। वह अपना काम दो टोकरियों के सहारे बड़ी लगन से करती थी। उसने एक बड़े और मज़बूत बाँस की लकड़ी में दो टोकरियाँ इस तरह टँगा रखीं थी कि एक बार में वह अन्य लोगों की अपेक्षा दुगना अनाज़ ले आ सके। कुछ दिनों तक जी तोड़ काम करते हुए कमला की एक टोकरी एक स्थान पर कट गई थी। उसे बड़ा दुख लगा पर उसने अपना कार्य बंद न किया। वह लगातार उसी गति से कार्य करती रही। एक दिन सेठ ने देखा कि घर पहुँचते-पहुँचते उसका आधा अनाज रास्ते में गिर जाता है। उसने कमला को बड़ी ज़ोर से डाँटा “ कमला जितना अनाज़ तुम रास्ते में गिरा देती हो उससे न जाने कितने गरीब लोगों के चूल्हे जल सकते हैं। यह टोकरी फ़ेंककर दूसरी क्यों नहीं ले लेती।“ मालिक की यह बात सुनकर कमला को तो ज़्यादा बुरा नहीं लगा पर वह टोकरी जिसमें छेंद था बिलख-बिलख कर रोने लगी। उसने कहा- “कमला मैं बहुत बुरी हूँ, तुम्हें मेरे कारण इतनी डाँट पड़ी।“ तब  कमला ने उसे दिलाशा दिया और कहा कि कल जब मैं अनाज़ लेकर खेत से आऊँ तो तुम रास्ते पर ध्यान रखना। उस टोकरी ने वही किया। उसने देखा कि जब टोकरी से अनाज़ गिर रहा था तब बहुत से कीड़े- मकोड़े, पशु- पक्षी आदि उस अनाज़ से अपना पेट भर रहे थे। उसे बात समझ में आ गई। घर पहुँचकर इस टोकरी ने सारी बात ज़मीदार को बताई। ज़मींदार दयालु तो थे ही उन्हें लगा जो अनाज़ मैं गरीबों को देता वही इसप्रकार कमला अन्य ज़रूरत मंद जीवों को उपलब्ध करा रही है।
उन्होंने कमला को बुलाकर अपनी गलती की माफ़ी माँगी और कहा कि टोकरी मत बदलना क्योंकि ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है।


दूसरी कहानी 
२.       एक समय की बात है किसी गाँव में एक गरीब लड़का रहता थी।उसका नाम था मुद्रक। किसी कारण वश वह एक भयंकर रोग से ग्रसित हो गया। उस रोग के चलते उसका मनुष्‍य का शरीर धीरे-धीरे पशुवत हो गया। उसके पूरे शरीर में बड़े-बड़े बाल उग आए और उसके नाखून किसी जंगली जानवर के पंजों से दिखने लगे। उसे जो देखता वही उसका मज़ाक उड़ाता। छोटे बच्चे उसे देखकर डरने लगे। अब शारीरिक समस्याओं के साथ-साथ वह मानसिक रूप से भी तनाव ग्रस्त हो गया था। प्रतिदिन के इस अपमान को वह सहन न कर पाया और अपना गाँव छोड़कर जंगल में जाकर पशु-पक्षियों के बीच ही रहने लगा। धीरे-धीरे उसने पशु-पक्षियों की बोलियाँ उनका स्वभाव आदि समझना शुरू कर दिया।
मुद्रक ने पशु-पक्षियों से ऐसी घनिष्‍ठ मित्रता कर ली कि वह जो कहता वे सब वैसा ही करते थे। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उसने जानवरों को पास के नगर में जाकर चोरी करने के लिए भी प्रशिक्षित कर दिया था।  अब वे जानवर पलक झपकते ही नगर में चोरी करने लगे। इसप्रकार की चोरियों से परेशान होकर नगर वासियों ने राजा से शिकायत की। राजा के गुप्तचरों ने कुछ दिनों में ही मुद्रक का पता लगा लिया और उसे पकड़ लिया गया। चोरी का कारण पूछे जाने पर उसने बताया कि भगवान मुझसे नाराज़ हो गया था इसलिए उसने मेरी ऐसी हालत कर दी अब मैं जंगल में रहता हूँ , ये पशु-पक्षी ही मेरे मित्र हैं और अपनी छोटी-मोटी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मैं इन्हें चोरी करने भेजता हूँ।
कारण सुनकर राजा दुखी हुए और सांत्वना देते हुए मुद्रक से कहा कि हमारे राज्य में वन विभाग में अधिकारी की जगह खाली है, जिसके लिए हमें ऐसे ही आदमी की तलाश थी जो जंगल को और जंगली जीवों को अच्छे से पहचानता हो। इसलिए आज से तुम्हें हम वन विभाग का अधिकारी बनाते हैं। तुम अपनी स्थिति के लिए भगवान को दोषी मत बनाओ क्योंकि ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है।

Friday 17 July 2020

बहुवचन के विभिन्न रूपो का अभ्यास, बहुवचन के रूप,


बहुवचन का अभ्यास-

         दिए   गए शब्द के उचित बहुवचन रूप का प्रयोग करते हुए रिक्‍त स्थानों की पूर्ति कीजिए
१)      ग्रामवासी
अ)    गाँव में कई _________ रहते थे।
आ)  सभी _____________ को राजा ने अपने दरबार में बुलाया।

२)      राजा-
अ)    सभी ________ अपनी प्रजा के भले की सोचते हैं।
आ)   कुछ _________ ने स्वयं प्रजा के साथ मिलकर काम किया।

३)      हाथी-
अ)    ________ का झुंड सड़क पर आ गया था।
आ)  बहुत सारे __________ सर्कस में काम करते थे।

४)     कमरा-
अ)    इस घर में पाँच _____ हैं।
आ)  सभी _________ के रंग अलग-अलग हैं।

५)     चटाई
अ)    यहाँ पर तरह-तरह की ____________ हैं।
आ)   कुछ ___________ पर बने फूल मुझे अच्छे लगे।