Thursday 23 July 2020

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कविता – हस्तकला

दुनिया है बहुरंगी, रंगीन है कला,
दिखती है सुंदर, रंगता है कौन भला।
देने को इसे नया रूप,
जुटा रहता है मतवाला।
            नजाकत से पिरोता है कल्पना
            जुटा रहता है दिनभर कलाकार,
            चाहता है सजीव बनाना,
            दिल की हर एक हसरत।
कल्पनाओं और हसरतों का
संगम कहलाती है, हस्तकला।
कभी यह देती है संतुष्‍टि,
और कहीं है दो रोटी का सवाल जुड़ा।
            जो भी हो कारण, पर बयाँ कर देती है,
            उस परिवेश की कथा, ये हमारी हस्तकला।
इस मशीनी युग के सूरज का,
लगा है संस्कृति पर ग्रहण,
दिखावे की चकाचौंध में
फ़ीकी पड़ गई हस्तकला।
            आधुनिकता की उर्वरता ने,
            ऊसर कर दी है हमारी संस्कृति
            मिट रही है कला,
            अवसान में है हस्तकला।
आइए इस दीप्तिमान आधुनिकता की चकाचौंध में,
अपनी संस्कृति के मूलरूप की आत्मा बचाएँ,
विहंगम दृश्यों के भँवर से,
 अपनी महानतम कला का परिचय कराएँ।
कभी जो हमारी पहचान थी, वह खुद आज पहचान की मोहताज है,
आइए एक कदम बढ़ाकर कला और कलाकारों को गले लगाएँ
जिसके प्रत्येक अंश में  हमारी संस्कृति की सोंधी महक है,
ऐसी महान कला को विश्‍व में सिरमौर बनाएँ।
                                                ’रचना मिश्र’

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