Monday 27 March 2023

साहित्य सागर/ महत्त्वपूर्ण जानकारी/ सारांश में/ ICSE - HINDI Sahitya sagar- simple notes , credit goes to many learner facilitators/ students/ teachers and publishers

 

क्रम संख्या

कहानी  का नाम

कहानीकार

लेखक  की विशेषताएँ 

रचनाएँ

प्रमुख पात्र

 उनकी विशेषताएँ

कहानी का उद्‍देश्‍य

 शीर्षक की सार्थकता

कुंजी शब्द (keywords)

१.

बात अठन्‍नी की

सुदर्शन

गद्‍य और पद्‍य दोनों में महारत हासिल है।

भाषा सह, स्वाभाविक, प्रभावी तथा मुहावरेदार है।

१.       हार की जीत

२.      सुप्रभात

रसीला

गरीब, ज़िम्मेदार, स्वामिभक्‍त, भोला, मेहनती,ईमानदार,

जगतसिंह का नौकर

रिश्‍वतखोरी की समस्या उजागर की गई है और न्यायव्यवस्था पर करारा व्यंग्य है।

कहानी अठन्‍नी की हेरा-फेरी के इर्द गिर्द ही घूमती है और आगे बढ़ती है।

अठन्नी, पेशगी,

रमजान

शेख सलीमुद्‍दीन का नौकर, सच्‍चा मित्र, दयालु, मददगार, समझदार, अच्‍छा इनसान

 

 इंजीनियर बाबू जगत सिंह

कठोर, निर्दयी,लालची, क्रोधी, भ्र्ष्टाचारी, मिठाई के शौकीन

 

शेख सलीमुद्‍दीन

ज़िला मजिस्ट्रेट, इंजीनियर के पड़ोसी, रिश्‍वतखोर, निर्दयी, भ्रष्टाचारी, अन्यायी

 

२.

महायज्ञ का पुरस्कार

यशपाल

भाषा अत्यंत प्रवाहपूर्ण, सहज तथा व्यावहारिक है।

निबंध, कहानी उपन्यास का लेखन किया।

स्वतंत्रता सेनानी थे।

झूठा-सच, देशद्रोही

सेठ

 विनम्र, उदार, धर्मपरायण, दयालु, मानवीय गुणों का भाव

प्राणियों की सेवा  ही ईश्‍वर की सेवा है।

सच्‍ची कर्तव्व्य भावना और निस्स्वार्थ भाव से किया गया कार्य महायज्ञ के बराबर होता है।

 

 

 

मानवोचित कर्म ही महायज्ञ है और उसका परिणाम मिलता है। सम्पूर्ण कहानी यज्ञों के पुण्य पर आधारित है।

अकस्मात्‍, मानवोचित, आद्‍योपांत, विपदाग्रस्त, दहलीज़, रज, तहखाना

सेठानी

कर्तव्यपरायण, बुद्‍धिमती, समझदार, आशावान, धैर्यवान

 धन्‍ना सेठ की पत्‍नी

विदुषी, तीनों लोकों को जानने की दैवी शक्‍ति

३.

नेताजी का चश्‍मा

स्वयं प्रकाश

उपन्यासकार, कहानीकार

वर्गशोषण के विरुद्‍ध चेतना

सरल, सहज भाषा

ईंधन, आएँगे अच्छे दिन भी

हालदार साहब

भावुक, संवेदनशील, देशभक्‍त और देशप्रेमी,

 

सभी के अंदर देशभक्ति होती है जिसको वे भिन्‍न-भिन्‍न तरीकों से अभिव्यक्‍त करते है। इसलिए सबकी भावनाओं का सम्‍मान करना चाहिए।

सभी अपने तरीकों और सामर्थ्य से देश की सेवाकरते हैं और देश के निर्माण में सहायक बनते हैं।

नेताजी की मूर्ति का चश्मा इस कहानी का महत्त्वपूर्ण भाग है। इसी के सहारे लेखक ्देशभक्ति और संवेदनशीलता का पाठ पढ़ाते हुए अपनी कहानी आगे बढ़ाते हैं।

कस्बा, चौराहा, मूर्ति, कौतुक, मरियल, उपहास

 

 

 

 

 

कैप्‍टन चश्‍में वाला

गरीब, बूढ़ा, मरियल, गांधी टॊपी, काला चश्मा, छोटी सी संदूकची और बाँस पर टँगे चश्‍मे, फेरी वाला

 

 

 

 

 

पानवाला

 

काला, मोटा, खुशमिज़ाज, असंवेदनशील, अशिष्ट

४.

बड़े घर की बेटी

मुंशी प्रेमचंद

उपन्यास सम्राट, यथार्तवादी और आदर्शवादी साहित्यकार

मानसरोवर, निर्मला, गबन गोदान

 श्रीकंठ सिंह

सज्‍जन व्यक्‍तित्व, शिक्षित, विनम्र, व्यावहारिक, स्पष्‍टवादी, संयुक्‍त परिवार और भारतीय संस्कृति के पक्षधर

पारिवारिक स्‍नेह एवं सामंजस्य को बनाए रखने में घर की बहुओं की अहम भूमिका होती है। बड़े घर की बेटियाँ संस्कारों  में भी बड़ी हों तो अपने सद्‍ विवेक से बिगड़ती हुई बात को सँभाल लेती हैं तथा परिवार को टूटने से बचा लेती हैं।

कहानी  का  शीर्षक पूर्णतः अर्थपूर्ण और सटीक  है क्योंकि कहानी की शुरुआत से लेकर अंत तक बहू आनंदी की अहम भूमिका दिखाई देती है। जो बड़े घर की है न कि हैसियत से बल्कि संस्कारों से भी।

जमींदार, पाश्‍चात्य, उजड्‍ड, किफ़ायत, मायका,

लालबिहारी सिंह

दोहरे बदन का सजीला नवजवान, भरा मुख, चौड़ी छाती, अनपढ़, क्रोधी किंतु सहॄदय या भावुक, भाई का सम्मान करने वाला

आनंदी

उच्च कुल की लड़की,  सुशील, समझदार, सहनशील, क्षमाशील, व्यावहारिक, ज़िम्मेदार बहू

बेनी माधव सिंह

गौरीपुर के ज़मींदार, समझदार, संयुक्‍त परिवार के प्रशंसक, श्रीकंठ का सम्मान, स्त्रियों को कम समझदार समझते है परंतु अंत में आनंदी की प्रशंसा करते है।

 

 

 

५.

भेड़े और भेड़िए

हरिशंकर परसाई

एक सफ़ल व्यंग्यकार है। सामाजिक और राजनैतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण पर करारा और सटीक व्यंग्य किया है।

सदाचार का ताबीज, भोलाराम का जीव, भूत के पाँव पीछे

भेड़े

सीधी-सादी जनता का प्रतीक, नेक, ईमानदार, कोमल, विनयी, दयालु निर्दोष, धोखेबाज और चालाक (भेड़ियों ) के बहकावे में आ जाती हैं।

व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक कहानी है।भोलीभाली जनता का शोषण भ्रष्‍ट राजनेताओं और मौकापरस्त चापलूसों द्वारा किया जाता है। वोट के लिए झूठे वादे आदि समस्याओं को व्यंग्य के द्वारा उजागर किया गया है

प्रतीकात्मक कहानी है जिसमें भेड़े आम जनता का प्रतीक ्हैं जिनकी संख्या ज़्यादा होते हुए भी मौकापरस्त राजनेता और उनके चापलूस (भेड़िए) अपना स्वार्थ पूरा करते हैं।

लेखक इन प्रतीकों के द्वारा प्रजातंत्र पर व्यंग्य करते हुए उसकी समस्याओं को उजागर करने में सफ़ल हुए हैं इसलिए यह शीर्षक उचित है।

सभ्यता, प्रजातंत्र, सर्वशक्‍तिमान, मुखारविंद, हृदय परिवर्तन,  नब्बे फ़ीसदी, विनय की मूर्ति, अजायबघर

भेड़िए

राजनेताओं का प्रतीक, ताकतवर, चालाक, स्वार्थी, धोखेबाज, लालची, भोलीभाली जनता का शोषण करना और चापलूसों का सहारा लेकर चुनाव जीतना, अवसरवादी, स्वार्थी

सियार

चापलूसों तथा मौकापरस्त व्यक्‍तियों के प्रतीक हैं, चालाक, स्वार्थी, धोखेबाज, लालची, राजनेताओं के आगे पीछे करते हैं और अपना स्वार्थ पूरा करते हैं।

 

 

६.

दो कलाकार

 मन्‍नू भंडारी

इनके साहित्य में आधुनिक समाज में पारिवारिक तथा सांस्कृतिक समस्याओं का हृदयस्पर्शी चित्रण मिलता है।

मैं हार गई , यही सच है

अरुणा

समाजसेविका, समझदार और भावुक, दयालु, संवेदनशील, निस्स्वार्थ सेवा, करुणा और ममता की मूर्ति, व्यावहारिक, कर्मठ

दो घनिष्ठ मित्रों के जीवन लक्ष्यों को दिखाते हुए सच्चे अर्थों में कलाकार का अर्थ समझाना ।

चित्रा जहाँ जीवन के हिस्सों को चित्र का केंद्र बनाकर उसे कला का दर्जा देती है वहीं अरुणा ज़रूरतमंदों के जीवन में रंग भरना ही कला मानती है।

यह शीर्षक कहानी के लिए सटीक है क्योंकि जीवन के प्रति दो घनिष्ठ मित्रों की सोच और कला की उनकी परिभाषा हमें पता चलती है। यह कहानी हमें दो तरह के कलाकारों की जानकारी देती है, कलाकार केवल वह ही नहीं है जो सिर्फ़ चित्रकारी करे अपितु वह भी है जो किसी के जीवन में खुशियाँ भरे

गलतफ़हमी, फ़रमाइश, घनचक्‍कर, मूसलाधार, विस्मय

चित्रा

धनी पिता की बेटी, चित्रकार, भौतिकवादी, दृढ़, कर्मठ, संवेदनहीन

 

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