Wednesday, 21 September 2022

कविता- हिन्दी तुम आयुष्‍मती रहना

 हिन्दी तुम आयुष्मती रहना


समय के उत्तर चढ़ाव में 

अविरल बहना,

हिन्दी तुम आयुष्‍मती रहना।


परतंत्रता का वज्र जो तुम पर गिरा है,

अंग्रेज़ी का तुम पर जैसे ग्रहण सा लगा है,

स्वतंत्रता की राह में संघर्ष करते रहना,

हिन्दी तुम आयुष्मती रहना।

आम जन का प्यार और खास की विशेषता लिए 

सदियों के अतीत से

आधुनिक भविष्‍य के

दिल में बसी रहना,

हिन्दी तुम आयुष्‍मती रहना।

लोग कहेंगे कि तुम नई हो, अल्हड़ हो

पर तुम अपनी माँ की विराटता का स्मरण रखना,

संपूर्ण विश्व में अपनी पताका लहराना,

हिन्दी तुम आयुष्मती रहना।

जनभाषा, राजभाषा और राष्ट्र भाषा बन,

भारत माँ के ललाट पर चमकना

अखण्ड भारत की शान बन 

हिन्दी तुम आयुष्‍मती रहना।

रचना मिश्र

१४ सितम्बर २०२२


Tuesday, 31 May 2022

शुक्र तारे को मस्तक पर रखकर उषा आ रही है- दीपदान एकांकी

 शुक्र तारे को मस्तक पर रखकर उषा आ रही है

यह वाक्य दीपदान एकांकी में प्रयोग किया गया है। इसका आशय


जब पन्ना जैसी वीर राजपूतानी अपने मस्तक पर दीपदान का दीप रखकर जाएगी तो ऐसा लगेगा मानो शुक्र ग्रह जो सबसे अधिक चमकदार ग्रह है उसे प्रातः की लालिमा अर्थात उषा अपने माथे पर सजा के आगे बढ़ रही हो। मतलब पूरा वातावरण दैदीप्यमान हो जाएगा…

मतलब कोई बहुत अच्छा और नेक व्यक्ति हो और उसने और अधिक अच्छा काम किया हो तो उसकी गरिमा बढ़ जाती है ठीक उसी प्रकार पन्ना यदि दीपदान करेगी तो सोना के अनुसार ऐसा लगेगा मानो शुक्र तारे को रखकर उषा आ रही हो